Page 25 - Isha Upanishad
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īśopaniṣad


























                         It is He that has gone abroad -That which is bright, bodiless, without scar of




                                     imperfection, without sinews, pure, unpierced by evil. The Seer, the





                            Thinker, the One who becomes everywhere, the Self - existent has ordered




                                 objects perfectly according to their nature from years sempiternal.॥8॥




                                                                                                                                                               (Translation by Sri Aurobindo)




                                                                                                      ै

                                                                                                                             ्
                                                    ु
                                                                                                                                                                                                                           े
                                       वह प ष ही सव   ा त ह - वह तत जो  यो तमय, शरीर-र हत, अपणता क  च

                                                                                                                                                                                                           ू
                                       या दाग स श य,  नाय एव नस-नाड़ी स र हत और श  ह एव पाप स  बधा नह  ह।
                                                                                                    ं
                                                                                                                                   े
                                                                                                                                                                                                         े
                                                                                                                                                                                                                                      ै
                                                                                                                                                                                       ं
                                                                                                                                                                   ु
                                                                                                                                                                              ै
                                                                                           ु
                                                                    ू
                                                              े


                                                                                                                                                          ु
                                         सवदश , मनीषवान वह एकमव जो सव  सब कछ हो जाता या बन जाता ह, उस
                                                                                        ्
                                                                                                                े
                                                                                                                                                                                                                           ै
                                                          ्
                                       वयसत प ष न ही सनातन वष  स, अना द काल स सभी पदाथ  को उनक  वभाव
                                                                                                                                                                                                                     े
                                                 ं
                                                                                                                         े
                                                               ु
                                                                             े
                                                                                                                                                                 े
                                                    क अन प पणतया ठ क-ठ क, यथातथ  प म  व  त कर रखा ह।

                                                                                    ू
                                                                                                                                                                                                                         ै

                                                        े
                                                                    ु
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