Page 23 - Isha Upanishad
P. 23
īśopaniṣad
He in whom it is the Self - Being that has become all existences that are
Becomings, for he has the perfect knowledge, how shall he be deluded,
whence shall he have grief who sees everywhere oneness ?॥7॥
(Translation by Sri Aurobindo)
ु
े
े
े
े
पण ान, व ान स स होन क कारण जस मन य क अ दर यह परमो
ू
चतना जाग गयी ह क वय आ मस ा ही, परम आ मा ही वय सभी भत,
ू
े
ू
ै
ं
े
ै
ु
ं
ू
ै
सभी स ाएं या स तया बना ह, उस मन य म फर मोह कस होगा, शोक
कहा स होगा जो सव आ मा क एकता ही दखता ह।
ै
ं
े
े